Monday, January 7, 2013

गजल- भास्करानन्द झा भास्कर


भ्रष्टाचार- ज्वाला- आगोश में जल रहा देश है
अंत प्रजातंत्र का, मात्र स्वतंत्र रोष अवशेष है

राजनीति के तंत्र-मंत्र, भ्रष्टाचार संयुक्त यंत्र
उग्र आतंकवाद से त्रस्त ग्रस्त पस्त स्वदेश है

पक्ष- विपक्ष अधर्म अब, धर्म बनके रह गया
जन-गण मन में अब तीव्र विरोध ही अशेष है

कुशासन-आसन पर आसीन कौरव दुशासन है
हसीन हस्तिना मलीन अब पाण्डवों में द्वेष है

वतन का अमन चमन लुट रहा है रात दिन
मां भारती के सपूत में अब क्षोभ और क्लेष है।

----------------------- भास्करानन्द झा भास्कर